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* प्रबन्धावली. जिनेश्वर सूरी से खरतर विरूद का स्पष्ट लेख है जिससे बहुत से पक्षपानियों का भ्रम दूर होगा। आचार्यों के नाम क्रमबार हैं, यह पूर्व देशको अपूर्व वस्तु है। आजतक अप्रकाशित थी। इसका पांडित्य और पद लालित्य पाठकों को पढ़ने से ही ज्ञात होगा।
नोट:-श्री पार्श्वनाथ मन्दिर प्रशस्ति' लेखक द्वारा संग्रहित और प्रकाशित 'जैन-लेख-संग्रह' प्रथम खण्ड लेख नं० २३६ ( पृ० ५८-६२) में देखें।
[इस प्रसस्तिके दोनों पत्थर राजगृहमें लेखकके मकान 'शांतिभवन' में सुरक्षित है।
'श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरन्स हेरेल्ड' पु० १२ अंक १० ( नवम्बर १९१६ ) पृ० ३७६-३७७,
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