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* प्रबन्धावली *
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कमरे में चले गये गये। हम लोग भी वहां बुलाये गये। अहल. कारने आकर कहा - बंगाले के सेठोंको सरकार अपने खास कमरे में बुलाते हैं। हमलोग उठ कर उसके साथ साथ चले। वहां पहुंच कर देखा कि कमरा एक साधारण सा है-कोई सजावट नहीं है केवल जाजमी फर्स बिछा हुआ है. और वगलमें एक मामूली पलंग ( ढोलिया ) रखा हुआ है। सरकार उसी पलंग के बगल में जो खाकी पोशाकसे घोड़ेसे उतरे थे वही पहिने हुए अर्द्धासनसे बैठे हुए हैं और उनके साथवाले ३४ और राजपूत भी घोड़ोंसे उतर कर उसी तरहकी वों पहिने बैठे हैं। सर प्रतापसिंहजी ने देखते हो हम लोगों का अभिवादन लेकर उनके नजदीक बैठनेको कहा। आज्ञानुसार हम लोग भी पासमें बढ़कर बैठे। इतनेही में थाल पहुंचा। अपूर्व दृश्य नजर आया। चांदी कांसेके बदले चीनीके प्लेट यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणोंके बदले त्रमश्रधारी यवनोंको देखा। सरकारने खानसामोंसे अपने हाथमें प्लेट ले लिया और साथके लोग भी लेते गये। परिवेशन चलने लगा। पावरोटी भी है, बिस्कुट भी है, भुजिया भी है, कलाकन्द भी है याने पाश्चात्य और देशी दोनों भोजन सामग्री परोसी गई। खाना आरम्भ हुआ। साथ साथ सरकारने हम लोगोंके तरफ निगाह डालकर कहा- "सेठ आरोगो"-- भाई साहबने उत्तर दियामहाराज अभी भोजन करके ही आ रहे हैं। सरकारने कहा- “जिमियेने जीमानो सोरो" और भोजनके लिये विशेष आग्रह करने लगे। मुझसे रहा न गया, विनयसे कहा-- "महाराज! हम लोगोंके भोजन में कुछ विचार है।" बस इतना सुनते ही सरकारने आंख उठाकर मेरी तरफ गर्दन घुमाकर कहा-"विवार क्या ? म्हे तो माल्यांको विचार करां, और कायको विचार ?” मैं कुछ उत्तर देनेको था कि भाई साहपने मौन रहने का संकेत किया। अस्तु, सरकार और उनके साथियोंने अच्छी तरह भोजन किया और वहां बैठे हो हस्त मुख प्रक्षालन कर लिया। बादमें हम लोगोंसे बंगाल प्रांतकी बहुतसी बातें
पूछी। उठने के समय सरकारने कहा - "आप लोग तो हमारे मेहमान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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