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* प्रबन्धावली*
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और तुमारे बेटने मुझे मारडाला घरमें ही घाटा पड़ा। यह शाहनशाही जङ्ग है, एक तरफ एक शाहनशाह है दूसरी तरफ सात शाहनशाह हैं और दुनियां भरकी आखें उस तरफ लगी हुई है ऐसी जङ्ग बार बार काहेको होती है, इससे बढ़कर और कौनसा अवसर आवेगा।"
जोधपुरके प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्वर्गीय मु० देवीप्रसादजी के पुत्र पीताम्बर प्रसादजी उस समय एक कवित्त रचा था। कविता यह थी:केते भूपाल जात शैलको बगीचन बाग,
केते बनमांहि दीन मृगनको मारे हैं। केते रङ्गमहलमें सहेलिनते आनन्द करत,
केते निशिघोष अति महामतवारे हैं। केते भूमिपाल जात पोलो घुड़दौड़में,
__ केते भूमिपाल रागरङ्गको निहारे हैं । धन्य २ आज महाराज सर प्रतापसिंह,
चीन जङ्ग मांझसो उमगते पधारे हैं ॥१॥
'देशबन्धु' भाग १ अङ्ग १८ ( २५ अगस्त १९२४) पृ०११-१२
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