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एक दृश्य
आज लगभग दो युगको बात है कि मैं मेरे बड़े भाई राय मणिलालजो, उनके पुत्र और मेरी स्वर्गीया माताजी के साथ प्रथम ही मारवाड़ की राजधानी जोधपुर गया था। कुछ थोड़े ही समय व्यतीत हुए थे कि वहां के प्रसिद्ध योद्धा, वृटिश गवर्नमेण्ट में विशेष प्रभावशाली महाराजा सर करनल प्रतापसिंहजी चीन युद्धसे बड़े नामवरी के साथ लौटे थे 1 उस समय वहां घर घर यही चर्चा और इस घटना की बड़ी खुशियाली जारी थी। मेरे भाई साहब उनसे मिलने गये और आकर मुझसे कहने लगे कि “सरकार ( वहां के लोग जोधपुर के महाराजा साहब को "दरवार" और सर प्रतापसिंहजी को “सरकार" कहते थे ) बड़े बुद्धिमान, सादे सीधे सज्जन पुरुष हैं। उन्होंने मुझको फिर मिलने कहा है, तुम भी इस बार साथ चलना, मिलकर तुमको भी बड़ी खुशी होगी ।" इस वार मैं भी साथ गया । जिस बंगले में सरकार रहते थे वहां पहुंचे। वह भादोंका महीना था और पूर्वाहका समय था । हम लोग भोजन करके हो खाने हुए थे। पाठक गण परिचित होंगे कि राजपूताने में विशेष कर वर्षा ऋतुमें मक्खियों का उपद्रव बहुत रहता हैं। बंगलेमें खबर मिली कि सरकार अभी तक लौटे नहीं हैं परन्तु शीघ्रही पहुंचेंगे। हम लोगोंको एक कमरे में ठहराया गया । द्वारपर युद्ध से प्राप्त हुई कई चीनी तोपें रखी हुई थी। कमरे के दीवारों पर सैकड़ों फोटो टंगे हुए थे। कहीं इङ्गलैण्ड के प्रसिद्ध लार्ड लेडियोंकी, कहीं जापान के बड़े बड़े लोगों की छोटे बड़े सब तरह के चित्र नजर आये । थोड़े ही देर में सरकार कई नौजवान राजपूतों के साथ घोड़े पर पहुंचे । उनके भोजनका समय हो गया था। तुरंत ही घोड़ेसे उतर कर बंगले के
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