Book Title: Prabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Vijaysinh Nahar

View full book text
Previous | Next

Page 180
________________ अशुद्ध कुंकुम ( कंसर ) जैनभाइयों ! "हैल्ड" के गत फेब्रुअरि संख्या में विलायती भ्रष्ट खांड सम्बन्धी लेख लिख कर अजमेर निवासी श्रीयुत् शोभागमलजी हरकाटने परमोपकार किया है. परन्तु विदेशसे आई हुई और २ वस्तुओंमें भी नाना प्रकार के अशुद्ध अपवित्र द्रव्य का भेल समेल रहता है कि जिसके श्रवणमात्र से अपने सहधर्मी भाइयों का तो कहना ही क्या ? किन्तु समग्र हिन्दूमात्र को उन वस्तुओं के व्यवहार से अरुचि और घृणा हो जावेगी । सर्व पाप का मूल लोभ है। इस लोभ के बश से मनुष्य नाना प्रकार के अकृत्य करने से भी भयभीत नहीं होता है । व्यवसाय में लाभ के अर्थ लोग यहां पर भी घृतादिक मूल्यवान द्रव्य में प्राय: दूसरी अल्प मूल्य की वस्तु भेल करते हैं, सो सब को विदित है, परन्तु विदेशियों में हिंसादिक का लेशमात्र भी विचार नहीं हैं, वहां पर यहां से भी अधिक अशुद्ध पदार्थों का मिश्रण होना क्या आश्चर्य है ? यहां किसी प्रकार का द्वेषभाव का आशय महीं समझना, कारण उन्हीं लोगों के प्रमाणिक ग्रन्थों में अपने व्यवहारिक द्रव्यों में महाभ्रष्ट अखाद्य पदार्थों के मिश्रण का विवरण पाठ करके उसको प्रगट करना उचित समझ कर यह लेख लिखने में आया । देखिये ! कुकुम ( केसर ) अपने जिसको एक उत्कृष्ट द्रव्य समझ कर सर्वदा व्यवहार में लाते हैं, उसमें कैसी २ घृणित अस्पृश्य पदार्थों का भेल रहता है। नीचे मूल और अनुवादसे सम्पूर्ण विदित हो जावेगा यहां पुनरूला से लेखनी को दूषित नहीं करूंगा। इस केसर में विदेशियों ने ऐसी वस्तु मिलाये हैं कि जिसका व्यवहार अपने श्रावकों को सर्वथा निषेध है और जिस को श्रवण कर हिन्दुस्तान मात्र का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212