Book Title: Prabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Vijaysinh Nahar
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•प्रबन्धावली.
*१४७.
त्रिय सुन्दर ओपम कूल कली, कनआ मयसु उतरी बिजली। मुगताम्बर जेम चलै पधरं, बहुरूप भलो मनुकाम हरं ॥ ४ ॥ सुर सुन्दर जेठ सहोदर छै, लघु ऊपल राव जोधार अछ। सुर सुन्दर लोक में भीम गया पधरा,
भिन माल को राज वडो जुकरा ॥ ५॥ पुन दोय सहोदर मित्र भला, समरूप मयंक सुधार कला । नलराजमनमथ रूप जिसा, महिरांण अथग्ग सोभाय इसा ॥ ६ ॥ किरणाल तपै पुन भाग भलं, अग्दूिर भजे इक आप वलं । नगराज उदार दोपंति खरा, किल छात पँवार मुगट खरा ॥ ७ ॥
(दोहा) दंग मांहि मंत्री तणा वेटा दोय सरूप । वहो दुरग माहि रहै रुपिया कोड अनूप ॥ १॥ सहर मांहि छोटो वस लाख घाट छै कोड। व भ्रात ने इस कहै करु कोडरी जोड ॥२॥ एक लाख देवे खरा दुरग वसू हूं आय । वलती भोजाई कहै बचन सुनो चित लाय ॥ ३॥ देवरजी सुणज्यो तुम्हे किसो कोट छै सून । या विण आयां ही मरे, राखो ये अब मून ॥ ४॥ बड़ऊ धरण बखाणीय छोटो ऊहड जाण । उठीयो बचन सुणी करी, लघु बंधव हरिरांण ॥५॥ कोप अंग तिण बेल घण कह्मो बसाउ दंग। एम कहो आयो सहर बहुलो पोरस अंग ॥ ६॥ उपलनै वासै जइ वदे पाछलो बात। भोजाई मोसो दियो सुवालो मुज तात ॥ ७॥
'ओसवाल नवयुवक' वर्ष २ संख्या ६ (पौष १९८६ ) पृ० २६६-३००
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