Book Title: Prabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Vijaysinh Nahar

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Page 168
________________ • प्रबन्धावली. यदि सरकारी सेन्सस (जनसंख्या) की ओर दृष्टिपात करें तो जेनियों की संख्या जैसी दिनोंदिन घट रही है, जिस अनुपात से उक्त जन संख्या ह्रास होती जा रही है उससे उसके अस्तित्व का लोप अवश्यंभावी प्रतीत होता है। बहुत से विद्वानों का मत है कि जैन समाज में आरोग्यता का अभाव, बाल-विवाह, व्यायाम का अभाव, और विश्वास-प्रियता आदि कारणों से ही समाज की जन संख्या घटती जा रही है। ऐसे अग्निकुण्ड से समाज की रक्षा होने का उपाय कठिन नहीं है। यदि समाज से बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह आदि कुप्रथाएं हटा दी जाय, अविश्वासिता को तिलांजलि देवें, शुद्ध वायु, जल और खाद्यवस्तुओं की व्यवस्था करें, एवं नियमित व्यायाम करें तो दिनोंदिन समाज में सबल संतति की संस्थामें अवश्य वृद्धि होगी। यदि अपने समाज का अग्निकुन्ड अविद्या समझी जाय, अशिक्षा के कारण समाज प्रतिदिन होनबल होती दिखाई पड़े तो इस अग्निकुन्ड से बचनेका उपाय कष्टसाध्य नहीं है। अविद्या हटाने के लिये स्थान २ में प्राथमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, स्त्री शिक्षा, व्यापारिक शिक्षा आदि शिक्षाओंका उचित प्रबन्ध होने से अपनी समाज के लोग क्रमशः सुशिक्षा प्राप्त करके ऐसे अग्निकुन्ड से मुक्त हो सकते हैं । यदि सामाजिक अन्तर्विलय अर्थात् समाज में दलबन्दियां, अन्याय उत्पीड़न आदि अत्याचारों को अग्निकुण्ड की उपमा दी जाय और ये सब समाज के घातक समझे जायं तो ऐसी दशा में भी सुधार हो सकता है। परन्तु मेरे विचार से केवल ओसवाल समाज का ही नहीं समप्र जैन समाज का धार्मिक प्रश्न जिस प्रकार जटिल होता जा रहा है और घर्तमान धार्मिक स्थिति जैसो छिन्न भिन्न होती जाती है उससे यह धार्मिक अवनति ही समाज का ज्वलन्त अग्निकुण्ड सा प्रतीत होता है। चाहे शेताम्बर समाज देखिये या दिगम्बर समाज, कहीं गच्छादि के झगड़े, कहीं पंडिन पार्टी और बावू पार्टी इन सब के बीच घोर कलह का समाचार किसी को अविदित नहीं है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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