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* प्रबन्धावली*
रुप में जो विचित्र वर्णन मिलता है, वह जैन-धर्म में नहीं है। जैनशास्त्र पृथ्वी के ऊपर और नीचे के देवी-देवताओंके निवास तथा श्रेणियों का वर्णन करते हैं। उनकी पूजा-अर्चा और वरदान से सभी प्रकार के सांसारिक उद्देश्यों और कामनाओंकी पूर्ति हो सकती है-- ऐसा माना गया है। जैन-धर्म के श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों में शक्ति-उपासना का यही रुप है।
यक्ष और यक्षिणी, योगिनी, शासन देवी तथा अन्य देवियों की उपासना-अर्चा के अनेक रुप जैन-धर्म में प्रचलित हैं और इन शक्तियों का आवाहन सामान्यतया मन्दिरों को प्रतिष्ठा और मूर्तियों को स्थापना अथवा किसी तप-अनुष्ठान के प्रारम्भ और समाप्ति में किया जाता है।
शक्ति-उपासना का विधान तन्त्रों में मिलता है और हिन्दू-धर्म तथा बौद्ध-धर्म में तन्त्र साहित्य का भरपूर भण्डार मिलता है। परन्तु जैन-धर्म में एक भी तन्त्र नहीं मिलता। 'शक्ति' का दर्शन यन्त्रों में
और श्रवण मन्त्रों में होता है और भिन्न भिन्न संकेतों और रुपों में इसकी अभिव्यक्ति हुई है। जैन धर्म में भी ऐस यन्त्रों और मन्त्रों को कमी नहीं है, परन्तु शक्ति-उपासना को किसी प्रकार प्रोत्साहन अथवा समर्थन नहीं मिलता। वरं जैन धर्म में 'शक्ति-पूजा' का प्रचार उठ रहा है।
'कल्याण' 'शक्तिअङ्क' वर्ष ६ संख्या १ ( अगस्त १९३४ ) पृ० ५६५,
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