________________
* १०६ *
* प्रबन्धावली *
अविवाहित और बाल ब्रह्मवारी मानते हैं । परन्तु श्वेताम्बर मतानुसार महावीर स्वामी का विवाह हुआ था और उनकी विवाहिता स्त्री यशोदा के गर्भ से प्रियदर्शना नाम की एक कन्या भी उत्पन्न हुई थी । दिगम्बराचार्य जिनसेन द्वारा रचित हरिवंश पुराण में महावोरस्वामी के विवाह का उल्लेख है । दिगम्बर मतावलम्बी जैन विद्वान् प्रोफेसर हीरालाल जैन पिटर्सन की चतुर्थ रिपोर्ट के १६८ वें पृष्ठ के ६ से लेकर ८ श्लोकों में हरिवंश पुराण से उद्धृत उक्त उत्सव का वर्णन देखकर इस अंशके उक्त पुराण की किसी पुरानी हस्तलिखित प्रतिमें होने के बारे में सन्देह किया था परन्तु बंगाल की एशियाटिक सोसाइटो के पुस्त कालय तथा और स्थानों में सुरक्षित हरिवंश पुराण की पुरानी प्रतियों में यह अंश वर्तमान है । अतएव इन श्लोकों की प्राचीनता के सम्मन्ध में सन्देह का कोई कारण नहीं है । जिनसेनाचार्य के समान प्राचीन प्रामाणिक ग्रन्थकारने जब अपनी पुस्तक में महावीरस्वामी के विवाहो - त्सव का वर्णन किया है, तब यह समझ में नहीं आता कि किस कारण से दिगम्बर लोग उन्हें अविवाहित मानते हैं ।
अब मूर्ति और मूर्तिपूजा द्वारा भी इन दोनों सम्प्रदायों की प्राचीनता की आलोचना करनी उचित समझता हूं । मूर्तिपूजा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है, इस सिद्धान्तमें मतभेद नहीं है । इससे यह प्रमाणित होता है कि जैन लोग प्राचीन कालसे मूर्तिपूजा करते आ रहे हैं। इसका काफी प्रमाण मिलता है कि भगवान महावीर के निर्वाणलाभ के बहुत समय पीछे तक उनके मतावलम्बियों में श्वेताम्बर और दिगम्बर नामका कोई सम्प्रदायभेद नहीं था । वान महावीर ने सम्पूर्ण वस्त्रोंका परित्याग कर तत्सामयिक अवस्थानुसार निश्चय ही त्यागकी चरम सीमाका आदर्श रखा था और इसके फलस्वरूप उनके मतावलम्बियोंने नग्न मूर्तिकी प्रतिष्ठा की इसमें कोई आश्चर्य नहीं है । इसी कारण मथुरा के निकट कंकाली टीला नामक स्थान से जितनी जनमूर्तियां खोदकर निकाली गयी है, उनमें से
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com
भग
·