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* प्रपन्धावली :
मोरछडो आचल सुपी गईयेत लोक हानद उठ वोहोत घर घर दीपवत नहीं सोग ॥ १४७ ॥ दुहां । राज तीहा आलीपानी इषाण नासीर नंद सीरवार सकल जु पटाण में नषेत्रामें चंद ॥ १४८ ॥ दुहां। धरम सीहे को नदन जटमल वाको नाव जोण कही कथ बनाये के वीच सवल के गाव ॥ १४६ ॥ दुहां। के ता आणद उपजे सुणता सब सुख होये जटमल नवे गुणी जन वीघतन लागे कोये ॥ १५० ।।
अनुघाद-गोरे की आवरत आयेसा वचन सुनकर आपने पावंद की पगडी हात मे लेकर वाहा सती हुइ सो सीवपुर में जाके वाहा दोनो भेले हुवे ॥ १४४ ॥ गोरा वादलकी कथा गुरूके व सरस्वती के मेहरवानगी से पुरन हुइ तीस वास्ते गुरु कु व सरस्वती कु नमसकार करता हु ॥ १४५ ॥ ये कथा सोलसे आसी के साल मे फागुन सुदी पुनमके रोज वनाइ ये कथा मे दो रस हे वीरा रस व सोनगार रस हे सो कया ॥ १४६ ॥ मोरछडो नाव गाव का रहने वाला कधेसर जाहा उस गाव के लोग भोहोत सुकी हे घर घर मे आनंद होता है कोइ घर मे फकीर दीषता नहीं ॥ १४७ ॥ उस जग आलोषान वाव राज करता हे नसीरुल षा का लडका हे सो सब पटानो मे सरदार है जयेसे तारो मे चंद्रमा सरदार हे आयेसा वो है ॥ १४८ ॥ धरमसी नाव कायेत तीनका वेटा जटमल नाव कवेसर ने ये कथा सवल गाव मे पुरण करी ॥ १४६ ॥ गोरा बादलकी कथा तमाम हुइ जो कोइ वांचे तोसकु दुवा पोचेगा॥ ____ उनको रिपोर्ट की इस भूल से हिन्दी-साहित्य के इतिहास में खड़ी पोलो का स्थान बिल्कुल भ्रमात्मक हो गया है। ___ इस रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद 'मिश्रबन्धुविनोद', प्रथम भाग, पृ० ४१६ नं. २५५ में इस प्रकार कवि जटमल के विषय में लिखा गया है___"इस कवि ने संवत् १६८० में गोरा बादल की कथा गद्य में कही भौर इस भाषा में खड़ी बोली का प्राधान्य है। अतः खड़ी बोली
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