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*प्रवन्यावली.
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जोधपुरकी प्रति में नथा मेरी प्रति में रचनाकाल के समय का कोई उल्लेख नहीं है। घोकानेर की प्रति का लिखन संवत १७९२ है, यानो इन चारों में सब से पुरानो है। मेरी प्रति संवत् १७८० की लिखी हुई है। ऐसी दशा में इस काव्य की और भी प्रतियां को मिलाकर इसके रचनाकालका ठोक पता लगाना चाहिए।
अन्यकर्ता
कवि जटमल का नाहर गोत्रीय होने के विषयमें सोसायटी की प्रति के सिवा और तीनों प्रतियोंमें इस प्रकार स्पष्ट उल्लेख है:सोसायटी की प्रति में
'धरम सीहे को नंदन जटमल वाको नाव ।
जीण कही कथ बनाये के बीच सवलके गाव ।' बीकानेर की प्रति में
'धरमसी को नंद माहर जाति जटमल नाउं ।
तिन करी कथा बनाय के विचि सुबला के गांम।' जोधपुर की प्रति में
'धरमसी को नंद नाहर खांप जटमल नाम ।
जिण कही कथा वणाय के वोचि सुबुलाकै गाम ।' मेरी प्रति में
'धर्मसी को नंदन नाहर जाति जटमल नाम । जिण कही कथा बनायविव सिंधुला के गांम।'
यद्यपि सोसायटी की प्रति में अन्यकर्ता के गोत्र का उल्लेख नहीं है. तथापि जब और तीनों प्रतियों में उनका गोत्र पाया जाता है, तो इस में शंका नहीं होनी चाहिए ।
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