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* प्रबन्धावली
वच्छराज देवराज ने श्रीपार्श्वनाथ का मंदिर सं० १४१५ आषाढ़ वदी ६ को बनवाया ।
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सम्राट् अकबर की धाम्मिंक उदारता प्रसिद्ध है । जहाँगीर, शाहजहाँ आदि बादशाहों के समय में भी जैनियों को धार्मिक विषयों मैं सहायता मिली थी। उनके पवित्र तीर्थक्षेत्रों के संरक्षण के लिये समय समय पर गुजरात, मालवा, बंगाल आदि प्रान्त के सूबों में लोगों से फरमाण आदि भी प्राप्त किये थे I
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जैनियों में श्वेताम्बर और दिगम्बर दो मुख्य सम्प्रदाय हैं। मैं दिगम्बर - साहित्य से विशेष परिचित नहीं हूं । श्वेताम्बर - साहित्य के इतिहास को मैंने जहां तक अवलोकन किया है, उससे यह स्पष्टः प्रतीत होता है कि श्वेताम्बर आचार्य और विद्वानों ने प्राचीन काल से अजैन विद्वानों की कृतियों को निःसंकोच से अपनाया था । उनका अभ्यास करते थे, उन पर पाण्डित्यपूर्ण टीकायें रची हैं, उनके साहित्य को बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे । यही धार्मिक उदारता है ।
जैनियों के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में सिद्धसेन दिवाकर, उमाखति वाचक* हरिभद्र अभयदेव से लेकर हेमचन्द्राचार्य आदि तथा दिगम्बर सम्प्रदाय में कुंककुंदाचार्य, समंतभद्र, अकलंकदेव, प्रभाचंद्र, विद्यानंदि, जिनसेन आदि बड़े बड़े प्रख्यात विद्वान हो गये हैं जिनकी कृतियों की पाश्चात्य विद्वानगण भी भूरि भूरि प्रशंसा करते हैं । परन्तु सनातन धर्मावलम्बी पण्डितों ने उन्हें कहीं अपनाया हो ऐसा देखने में नहीं आता यहाँ तक कि वे महत्वपूर्ण जैमग्रन्थों के नामोल्लेख करने में भी हिचकते थे । यह अनुदार भाव उन लोगों की धार्मिक
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ये तथा आगे के भी दो एक आचार्य दिगम्बर-सम्प्रदाय में भी मान्य हैं - सम्पादक ।
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