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* प्रवन्धावली *
आदि नाना प्रकार धर्म और सत्कार्य के लिये अर्थ दे गये हैं और उस फंडमें अभीतक आमदनी होती है। ऐसे ऐसे कार्यों से समस्त श्रोसंघ लाभ उठा रहे हैं। जहां जहां जैन भाई लोग वसते हैं वहां वहां ऐसे धर्मादे पडकी कमी नहीं है, खास कर इसे यह पूर्व देश में तीर्थ स्थानों की संख्या अधिक होने के कारण बहुत से धर्मादे फण्ड वर्त्तमान हैं । परन्तु बहुतसे फण्डों के हिसाब की रिपोर्ट प्रकाशित होते देखी नहीं गई ।
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बहुत से स्थान ऐसे हैं कि जहां कई कारणों से धर्मादे फण्ड की व्यवस्था ठीक नहीं है । यदि वहां को तपासणी को जाय और जो २ त्रुटियाँ दोख पड़े उसके सुधार की व्यवस्था हो जाय तो आमदनी वृद्धि होने की आशा है और दिन २ धर्मादे फण्ड की अवश्य उन्नति होगी ।
और जहाँ अच्छी
बहुत से स्थानों में ऐसा भी देखने में आता है कि सर्व प्रकार के साधन रहते भी किसी तुच्छ कारण से श्रीसंघ में मतभेद होकर व्यवस्था में गडबड़ चल रहा है। वहां पर ऐसे कारणों को शोध कर के सत्र श्रीसंघ को समझा कर उनको एक मत कर के सुधार किया जाय तो बहुत ही लाभ हो सक्ता है और भविष्यत् में अधिक हानि का कारण भी दूर हो जा सकता है। धर्मादेकी रकम का हिसाब तो जहां तक बने साफ रहना ही उचित है, दशा में रहती है, वहां पर उस धर्मादे फण्ड के उद्देश्य की भी अच्छीतरह सफलता प्राप्त होती है और कार्य वाहकों को भी अधिक उत्साह रहा करता है। जहां गड़बड़ रहता है वहां जो मुख्य २ कारण होते हैं, वह यह है कि प्रथम तो धार्मिक फण्ड द्रव्यत्रान शेठ साहुकारों के हाथ में रहता है उन लोगों को अपने २ कामों से ही अवकाश नहीं मिलता तो धर्ना का कार्य कौन संभाले ? उनके गुमास्तों के हाथ तें बिलकुल छोड़ा हुआ रहता है जो यदि भाग्यवश विश्वासी मिल गये तो ठीक है नहीं तो सिद्ध श्री रकम में ही गड़बड़ हो जाता है ।
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