Book Title: Prabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Vijaysinh Nahar

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Page 97
________________ . . •प्रधधायलो. में से है। प्रति में वहां को छाप भी मौजूद है, और उसके प्रथम पत्र में उसका वर्णन भंगरेजी में इस प्रकार है "Sent by E. Wellesley Resident at Indore to Mr. Atkinson Reed. June 2nd 182 +. Legend of the Padmavatee wife of the Ranah of Chittore including the attack on Chittoregurl by Allauddeen on her acc:) unt, & the actions of Gorah & Badul in her defence. The original version is in mixed Hindovee provincial Dialect as given in one column-the other column is a version in ordinary Hindovee." इससे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि फोर्ट विलियम कालेज के अधिकारियों ने जिस प्रकार पं० लल्लूलाल जी वगैरह से हिन्दो की गद्य पुस्तक तैयार कराई थीं, उसी प्रकार प्रायद इन्दौर के रेज़िडेण्ट वेलेस्लो साहब ने भो कित्ता से इस 'गोरा वादल का कथा' का हिन्दी अनुवाद कराकर अपने मित्र ऐटकिंसन साहब को भेजा था। यह प्रति सन् १८२४ को २ जून को फोरेंविलियम कालेज में प्राप्त हुई थी। ___ अंगरेज़ी के उपयुक्त वर्णन में अथवा प्रति के अन्त में जहां मूल और अनुवाद समाप्त हुए हैं, कहीं भी उसके लेखक आदि का नाम, स्थान अथवा लिखन-संवत् आदि की चर्चा नहीं है। प्रति बहुत भशुद्ध लिखी हुई है। अक्षर मारवाड़ी हिन्दी हैं, और बहुत प्राचीन नहीं मालूम होते। उसके अनुवाद को भाषा दुढारी हिन्दी प्रतीत होती है, और सम्भव है कि अनुवादक महाशय शायद जयपुर आदि पूर्व-राजस्थान के ही निवासा होंग। कारण, अनुषाद में उस तरफ़ के बहुत से प्रचलित शब्द मिलते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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