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*प्रवाधावली.
आरम्भ-श्री रामजी प्रसन्न होये। धीगनेस साये नमः । लक्ष्माकान्त । हैवाल कीसा चित्तौड़ गड़ के गोरा बादल हुआ है जोन का बारता की कीताब होंदवी में बनाकर तैयार करी है ॥
सुक सपत दायेक सकल सींद वुद सहेत गणेश बीगण वीजर ला वोन सो वेलो मुज परणमेश ॥ १ ॥ दूहा ॥ जटमल वाणी सर सरस कहतां सरस वर वंद।
चइवाण कुल उवधारो हुवा जुवा चावंद ॥२॥ समाप्ति-गोरेको आवरत आवेसा वचन सुनकर आपने पावंदको पगड़ी हाथ में लेकर वाहा सती हुई सो सीवपुर में जाके वाहा दोनों मेले छुवे ॥ १४४ ॥ गोरा बादल को कथा गुरू के घस सरस्वतो के महरवानगी से पुरन भई तीस वास्ते गुरु कू सरस्वती कू नमसकार करता हु ॥ १४५ ॥ ये कथा सोलसे आसी के साल में फागुन सुदी पुनम के रोज बनाई। ये कथा में दोर सेह वोरा रस व सीनगार रस हे सो कया ॥ १४६॥ मोरछड़ो नाव गाव का रहनेवाला कवेसर जगहा उस गांव के लोग भोहोत सुकी है घर-घर में आनन्द होता है कोई घर में फकोर दोषता नहीं ॥ १४७ ॥ ___ उस जग आलीपान बाबा राज करता है मसीह वा का लड़का हे सो सब पटानों में सरदार है जयेसे तारों में चन्द्रमा सरदार हे आयेसा वोहे ॥ १४८॥ धरमसी नावका वेतलीन का वेटा जटमल माव फवे. सर ने ये कथा सबल गांव में पुरण करी ॥ १४६ ॥
विषय-मेवाण की महारानी पद्मावती की रक्षा में गोग और बादल की कीर्ति की कथा।
नोट-प्रन्यकर्ता का नाम जटल है, और उसने संवत् १६८० में यह ग्रन्थ बनाया।
सोसायटी की प्रति देखने पर मालूम हुआ कि वह हस्त-लिखित प्रत्य कालेज आफ् फोर्ट विलियम के सरकारी संग्रह को हिन्दी-प्रतियों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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