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• प्रबन्धावली.
प्रतिया हमने प्राप्त की हैं। सम्पादन और टिप्पणी का बहुत कुछ कार्य हो चुका है। जटमल के विषय में विशेष हाल प्रयत्न करने से भी हमें बात नहीं हो सका। अजमेर के सुप्रसिद्ध विद्वान् गौरीशंकर जी ओझा से हमने पूछ-ताछ की, तो उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि फलकत्ते के थावू पुरणचन्द जी नाहर से आप को जटमल के विषय में बहुत-सी बातें मालूम हो सकती हैं, क्योंकि जटमल उन्हीं के गोत्र का महाजन था। उन्होंने यह भी लिखा है कि आप के संग्रह में उक्त प्रन्थ की कई प्रतियां हैं, और यदि हम उन्हें देखना चाहें, तो आपने उदारता पूर्वक सहें हमारे पास भेजना स्वीकार किया है।
हम आप के अत्यन्त कृतज्ञ होंगे, यदि आप उक्त प्रतियां हमारे पास भेजने की कृपा करें। जटमल के सम्बन्ध में तथा नाहर-वंश के तत्कालीन महत्व और अन्य महापुरुषों के सम्बन्ध में भी आप जो पाने बतला सकते हों, उनको बतलाने की कृपा भी करें।
एक यात और। हिन्दी के विद्वानों में प्रसिद्ध है कि जटमल का उक्त अन्य गद्य में है, पर हमें अभी तक जो प्रतियां मिली हैं, वे सब पद्य में है, गद्य की एक पंक्ति भी उनमें नहीं। काशी के घावू श्यामसुन्दरदास जो लिखते है कि उन्होंने गद्य कथा देखी है, और उसकी कोई प्रति 'बंगाल एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय में है। यदि आप को विशेष कष्ट न हो, तो इस विषय का निश्चित पता लगाने का प्रयत्न करके हमें अनुगृहोत करें, और यदि सम्भव हो, तो गद्य-कापी का प्रतिलिपि भी भिजवा दें।"
मेरे पाल जो कुछ साधन थे, मैंने उनको यथासमय लिख दिया था; परन्तु कार्यवश बंगाल एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय में जाकर वहां की प्रति को देखने का मुझे अवकाश ही नहीं मिला। इस बीच पं० नरोत्तमदास जी और ठा. रामसिंह जी, डाइरेकर आप
एज्युकेशन, बीकानेर-स्टे, काकते पधारे। उन्होने दंगल एशिया. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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