________________
कुएँ नाम
गजस्थान में कुएँ भांग को कहावत प्रसिद्ध है। मारवाड़ की मरुभूमि में पानो भूगर्भ के बहुत निम्नस्तर में रहता है, इस कारण वहां कुओं, बावलो आदि बनाना व्ययसाध्य है। बङ्ग, बिहार आदि प्रान्तों की तरह वहां घर-घर में कुएं नहीं रहते। जैसलमेर प्रदेश के कई. प्रामों में तो कोसों से पानी लाया जाता है । परन्तु साधारणतः राजपूताने के गांवों में एक ही कुआं होता है, उसोका पानो सब लोग व्यवहार करते हैं। ऐली दशा में यदि कुएं में भांग डाल दिया जाय, तो उसके पानी पीनेवाले सव लोगों को नशा हो जाना अनिवार्य है। तात्पर्य यह है कि किसी बड़े से कभी कोई भ्रम हो गया, तो सभी लोग वही भ्रम कर बैठते हैं। 'गोरा चावल की कथा' पर भी यह बात ठीक घटती है।
डिंगल साहित्य के 'गोरा बादल की कथा' का नाम तो मैं बहुत दिनों से सुनता आता था, और उसकी एक हस्त-लिखित प्रति मेरे संग्रह में भी थी; परन्तु उसके विषय में और अधिक मुझे पात न था। कुछ समय हुआ बीकानेर-निवासी इतिहास-प्रेमी श्री भंवर. लाल जी नाहटा ने मुझसे कहा कि इस 'बारता' के रचयिता कवि अटमल नाहर गोत्रीय ओसवाल थे। इस बात को सुनकर मेरो इच्छा उनके विषय में और अधिक जानने को हुई। मालूम हुआ कि वे गहोर के निकटवतों सिंबुला ( सुबला, सबल ) ग्राम के रहनेवाले थे। वे एक अछे कवि थे। वे जैनधर्मावलम्बी थे, और उनकी धर्म पर
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com