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• प्रवन्धायली.
समयके गद्य-लेखक है। इस काल में भाषा में अनुप्रास यमकादि का विशेष आदर नहीं हुआ।
___जटमल ( संवत् १६८० वि०) हे वात की चीतौड़ गड़ को गोरा बादल हुआ है जीन की वार्ता की किताब हींदवी में बना कर तैयार करी है।
गोरे को भावरत आवे का बचन सुनकर आप ने पावंद की पगड़ी हाथ में लेकर वाहा सती हुई सो शिवपुर में जाके वाहा दोनों मेले हुवे।
उस जग आलीषान बाघा राज करता है मसीह वाका लड़का है सो सब पठानों में सरदार है जयेसे तारों में चन्द्रमा सरदार है भोयसा वो है।”
फिर बाद में पं० रामचन्द्र शुक्लजी ने भी उसो भ्रमपूर्ण धारणा से 'हिन्दी-साहित्य के इतिहास के पृष्ठ ४७३ में जटमल और उनकी रचनापर निम्नलिखित बात लिखो है___ "वत् १६८० में मेघाड़ के रहनेवाले जटमल ने गोरा बादल की जो कथा लिखी थी, वह कुछ राजस्थानोपन लिये खड़ी बोली में थी। भाषा का नमूना देखिये___ गोरा बादल की कथा गुरू के बस, सरस्वती के मैहरबानगी से, पुरन भई, तिल वास्ते गुरू व सरस्वती • नमस्कार करता है । ये कथा सोल से असी के साल में फागुन सुदी पूनम के रोज बनाई। ये कथा में दो रस हे-बीर रस व सिंगार रस है, सो कथा मोरछड़ो नावं गांव का रहनेवाला कवेसर। उस गांव के लोग भोहोत सुखी है। घर-घर में आनंद होता है, कोई घर में फकीर दीखता नहीं।
इन दोनों अवतरणों से स्पष्ट पता लगता है कि अकबर और जहाँगीर के समय में ही खड़ी बोली भिन्न-भिन्न प्रदेशों में शिष्ट
समाज के व्यवहार की भाषा हो चली थी। यह भाष, उर्दू नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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