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मगा शिष
वीरात् ७० वर्षे, संवत् २२२ अथवा और किसी समय में श्री रतप्रभ सूरि जी ने उपकेश ( भोशियां ) नगर निवासी राजपूत आदि लोगों को जैनी बनाया था। उस समय उन लोगों के पुरोहितों ब्राह्मणों ने उनका पौरोहित्य कर्म छोड़ दिया था। ऐसी दशा में जिन लोगों ने वैदिक धर्म छोड़ कर जैन धर्म स्वीकार किया था; उन्हें बहुत अड़चन पड़ने लगो, कारण, गृहस्थाश्रम में विवाहादि संस्कारों की बराबर आवश्यकता रहती है । उस समय वहां के मग ब्राह्मण लोगों ने इस इकरार पर उन लोगों का पौरोहित्य स्वीकार किया कि वे लोग बराबर पीढ़ियों तक इन ब्राह्मणों को निभायें और ये लोग भी सिवाय इन जैनियों के दूसरे से याचना न करें। ये ब्राह्मण आजकल भोजक के नाम से प्रसिद्ध है- वैदिक धर्म पालते हैं और जैनियों को यजमान मानते हैं। विवाह के पश्चात् वर कन्या तथा उपस्थित लोगों को ये लोग जो भाशि और मङ्गल सुनाते हैं वे जैन दृष्टि से भी महत्व के हैं। इन भोजक ब्राह्मणों का उल्लेख भशियां स्थित सवियाय माता के मन्दिर के संवत् १२३६ के शिला लेख में पाया जाता है। ये मारवाड़, बीकानेर, राजपूताने में ही अधिकतर हैं और जैनियों के पौरोहित्य के अतिरिक्त उन लोगों के मन्दिरों में भी पुजारी का काम करते हैं। परन्तु बेद का विषय है कि इन लोगों में विद्या का प्रचार बहुत कम है. यह अधिकतया अशिक्षित होते हैं। प्राचीन काल में
● 'जंन लेख संग्रह' भाग १, पृ० १६८ लेख नं० ८०४ ।
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