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स्त्री-शिक्षा
मनुष्य मात्र को शिक्षा की आवश्यकता है। हिताहित ज्ञान ही मनुष्य को पशुओं से पृथक् करता है और इस विवेक का केवल शिक्षा से ही विकाश होता है। चाहे माध्यात्मिक विषय हो चाहे वैज्ञानिक हो एकमात्र शिक्षा से ही यह शान सम्यक् परिस्फुटित हो सकता है। अतः शिक्षा की आवश्यकता और उपयोगिता सदैव रही है। मनुष्यसृष्टि में पुरुष और स्त्री दोनों का सम्बन्ध अविग्नि है, दोनों के महत्व में भी कोई पार्थक्य नहीं है। अपने जातीय जीवन में महिलाओं का स्थान भी वैसा ही उच्च कोटि का है जैसा कि पुरुषों का। भाप संसार के किसी भी देश में जाइये, किसी भी कौम को देखिये बालक बालिकाओं की शिक्षा का कुछ न कुछ प्रबन्ध अवश्य मिलेगा। यदि माताएं सुशिक्षित हों तो उनके बच्चों पर वही प्रभाव पड़ेगा और वह बचपन की शिक्षा उनके जीवन के शेष मुहर्त तक उसी प्रकार अङ्कित रहेगी। जातीय जीवन की उन्नति और अवनति ऐसी शिक्षामों पर निर्भर है। कोई भी जाति की सथी उन्नति उसी समय हो सकती है जब कि उस जाति की महिलाएं सुशिक्षित हों और उनके विचार उच कोटि के हों। जब तक ऐसा न होगा तब तक सभी और सावी उमति सम्भव नहीं है। केवल माता ही अपने बच्चे के सुकोमल हृदय में मावी महत्व के बीज लगा सकती है।
खेद का विषय है कि अपने भारतवासियों में खासकर अपने मोखपाल समाज में स्त्री शिक्षा का विशेष अभाव है। यदि मैं यह
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