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रत्न कुंवरी बीबी
जोधपुर के मुन्शी देवी प्रसादजी के नाम से हमारे बहुत से पाठक परिचित होंगे। आप इतिहास के प्रसर विद्वान थे, मुख्यतः भारत की मुसलमानी अमलदारी एवं मुसलमान बादशाहों तथा देशी राजाओं के जीवन-चरित्र और राजपुताने के तबारिख का आप को पूर्ण ज्ञान था। आपने इतिहास का अध्ययन, मनन और तविषयक प्रन्य लिखने में ही जीवन व्यतीत किया। इस प्रकार आप का इतिहास पर अतुलनीय प्रेम देखकर मुझे इस विषय की ओर आसक्ति उत्पन्न हुई थी और भाप मुझे बारम्बार उत्साहित किया करते थे।
आज मैं पाठकों के सन्मुख जिन महिला रन के विषय में कुछ कह रहा है यह उक्त मुन्सिफ साहेब की “महिला मृदुवाणी” नामक अन्य के आधार पर ही लिखा गया है। यह पुस्तक ई० सन् १९०५ में याने आज से २० वर्ष पूर्व काशी की प्रसिद्ध नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित हुई थी। भाप पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं:
"भारतवर्ष की पुण्य भूमि में अकेले पुरुष ही बौदह विद्या निधान नहीं एप है परन त्रियां भी समय २ में ऐसी होती रही है जो सोने चांदी मोर ग जड़ित आभूषणों के अतिरिक्त विद्या, बुद्धि और काव्यकला के दिव्य भूषणों से मी भूषित थीं और अब मी है। जिनके पखान भनेक पुस्तकों और जन श्रुतियों में विद्यमान है। पर हम को यहां केवल कविया कांताओं से प्रयोजन है जिन की भाषा कविता का भब तक कोई स्वतन्त्र प्रत्य हमारे देखने में नहीं माया था और
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