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*प्रबन्धावली. हुए हैं। शिलालेख के मा भाग : लंबी रेखा से नीचे का अंश भी दो भागों में विभक्त है। कार के एक अंश में हिन्दी और नीचे की बाई तरफ बङ्गला अक्षरों में और दाहिनी तरफ फारसी अक्षरों में लेख खुदे हुए हैं। ऐसा तीन भाषाओं का शिलालेख कम देखने में आता है। इसका चित्र देखने से पाठकगण अच्छी तरह समझ लेंगे। इस शिलालिपि का अक्षरान्तर नीचे प्रकाशित किया जाता है।
सारांश यह है कि विक्रम संवत् १७६१, शकाब्द १६५६ के वैशाख महीने में अक्षय तृतीया के दिन महाराज गंधर्वसिंह ने यहादुरपुर के समीप देवीपुर के दक्षिण गंगा के तट पर जमीन खरीदकर धर्मार्थ हरि-मन्दिर और कूआं तैयार कराया था। लेख में ज़मीन का परिमाण २२ बीघा ८ कट्ठा और उसकी चौहद्दी लिखी है। जमीन रत्नेश्वर की स्त्री से खरीदी गई थी। हिन्दो और बङ्गला में केवल रत्नेश्वर को स्त्रो का उल्लेख है; परन्तु फ़ारसी में ब्राह्मण जाति के रत्नेश्वर की ईश्वरोदेवी नाम को विधवा स्त्री से खरीदने का उल्लेख है। फ़ारसी लेख में लेख खोदनेवाले का नाम और राज्य वर्ष १६ अर्थात् दिल्ली के मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के राजत्व का १६ वां वर्ष, हिजरी सन् ११५६ तारीख ६ सव्वाल खुदा हुआ है। ईसवी सन् १७३४ से संवत् १७६१ और हिजरी सन् ११४६ मिलता हैं। इस हिसाब से शकाब्द १६५६ होना चाहिये। वंगला में शकाब्द सोलह सौ स्पष्ट है ; परन्तु आगे के अक्षर साफ पढ़े नहीं जाते।
प्रचलित इतिहास में राजा गन्धर्वसिंह का नाम देखने में नहीं आया। गन्धर्वसिंह का बंगाल देशके किसी न किसी स्थान से संबंध अवश्य होगा; और वे कोई साधारण स्थिति के नहीं थे। बंगला अक्षरों में “महाराजा गन्धर्वसिंह बहादुर" और फ़ारसी में "राजा गन्धर्वसिंह” लिखा है। हिन्दी में पहले "नप गन्धर्वसिंह" और पोछे
"महाराजा" भी खुदा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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