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प्रबन्धावली.
शताब्दी। पंडित नाराम जी ने इस शताब्दी के ५ ग्रन्थों का उल्लेख किया है। देश में पोर राजनैतिक विप्लव के कारण इस समय में अधिक अन्य रचना होने की सम्भावना नहीं थो तथा अभी तक और प्रन्थ उपलब्ध मो नहीं हुए हैं।
(१) सप्तनि राम-सं. १३२७, कर्ता का नाम नहीं है। (२) संघपति समास रास । (३) थूलिभद्र फागु। ..४) प्रवन्धचिन्तामणि के माषा फयानक (1) (५) कच्छुलि ससा।
पंजहवीं शताब्दी। पण्डित नाथूराम जी प्रेमी ने इस शताब्दी के केवल तीन ही अन्यों का उल्लेख किया है परन्तु इस शताब्दी के और भी प्रत्य उपलब्ध हैं। इसी समय से भाषा साहित्य उन्नति के सोपान में चढ़ने लगा और सत्रहवीं अठारहवीं शताब्दी में उम्व शिखर पर पहुंचा।
(१) सं० १४१२ में उपाध्याय विनयप्रम कृत 'मौतम रासा', इसमें चरम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी के प्रधान शिष्य गौतम स्वामी का संक्षिस परित्र है। इस स्तुति को लामदायक और मांगलिक समझकर श्रावक सोग इसका नित्य पाठ करते हैं। यह छोटा प्रन्य है और अन्त में संवत् तथा ॐ विनयप्रभ का नाम है। प्रेमी जी तथा और लेखक किस कारण से 'विनयप्रम' के स्थान में इनका "उदयवंत' या 'विजयभद्र' नाम लिखते हैं यह समझ में नहीं आता। स्तुति के अन्त में नाम स्पष्ट है ।
“विनय पहु उवम्झाय धुणीजे" (२) २०१४२३, ज्ञान पंचमी नउई-वियण कत ।
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