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४ प्रबन्धावली
किया है। आज तक भारत वर्ष से प्रकाशित कोई भी जैन ग्रन्थ इसके मुकाबले में नहीं छपा है। सम्पूर्ण आवश्यकोय टीका टिप्प. णियों और सूचियों के साथ ऐसा शुद्ध संस्करण एक आदर्श स्थल है। हाल में अमेरिका के “Harvard Oriental Series'' में हार्टल साहबने पूर्णभद्र गणि कृत "पंचतंत्र का एक संस्करण सम्पादित किया है। आपने इस कार्य में लगभग १० हस्तलिखित पुस्तकों को बड़े कष्ट से दूर दूर से एकत्रित करके मूल को मिलाया है और एक र अक्षरों को देखा है। कितने ही पाठान्तरों और कथाओं के हेर फेर पर सतर्क वादानुवाद किया है। भूलों का परिशोधन और उपयुक्त प्रस्तावना और परिशिष्टों द्वारा ग्रन्थ को विभूषित करना आप का हो काम है। इतने आन्तरिक गुण होने पर भी बाह्यरूप पर का ध्यान नहीं दिया गया है। मैंने आज तक इतना सुन्दर संस्करण किसी भी भारतीय ग्रन्थ का नहीं देखा । अतएव मैं विश्वास करता हूं कि सम्पा. दन कार्य इस ही उपर्युक्त प्रकार के आदर्श पर होने से चाहे वे अन्य प्राचीन हों वा नवोन हों समस्त संसार में सुयोग्य सम्पादन के बल से निस्सन्देह सम्मानित होंगे। अशुद्ध पुस्तकों से बहुधा विद्या के स्थान पर अविद्या ही फैलती है।
पाठकगण यह न समझे कि मैं केवल अपने अन्य सम्पादन कार्य की त्रुटियां लिख रहा हूं। नहीं प्रत्युत मुझे आज तक यहां के प्रकाशित अमूल्य ग्रन्थों के अच्छे २ संस्करणों का घरावर स्मरण है। अपने जैन श्वेताम्बर सिद्धान्त ग्रन्थों के प्रकाशन कार्य में बम्बई को श्री आगमोदय समिति तथा रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला, सूरत की श्री देवचंद लाल भाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था, बनारस की श्री यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनमर की श्री जैनधर्म प्रसारक सभा, जामनगर के पं० श्रोमान् हीरालाल हंसराज ने जो २ ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं, वे अवश्य प्रशंसनीय हैं। हमारे अच्छे २ दिगम्बर जैन सिद्धान्त ग्रन्थों
का इन वर्षों में जैन सिद्धान्त भवन आस से, बाबई की माणिक्यचंद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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