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भिखारी समस्या नहीं है। अगर भिखारी ही समस्या होता, तब तो भिखारी के पास से गुजरते हुए
प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा अनुभव होता। अगर भिखारी ही कोई समस्या होता, तो भिखारी बहुत पहले ही बिदा हो चुके होते। समस्या तुम्हारे भीतर है, तुम्हारा हृदय उसे अनुभव करता है। इसे समझने की कोशिश करना।
मन तुरंत बाधा डाल देता है जब कभी हृदय प्रेम से भरता है, तो मन तुरंत बाधा डाल देता है। मन. कहता है, 'चाहे तुम उसे कुछ दो या न दो, तुम्हारे देने न देने से कुछ न होगा, वह तो भिखारी का भखारी ही रहेगा।' वह भिखारी रहता है या नहीं रहता, इसके लिए तम जिम्मेवार नहीं हो। लेकिन अगर तुम्हारा हृदय कुछ करने का भाव रखता है, तो जरूर करना। उससे बचने की कोशिश मत करना। मन उस समय बचने को कोशिश करता है। मन कहता है, 'क्या होगा इससे? वह तो भिखारी ही रहने वाला है, इसलिए कुछ भी करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम मन की सुनते हो, तो ऐसा अवसर चूक जाते हो जहां प्रेम बह सकता था।
अगर भिखारी ने भिखारी ही बने रहने का निर्णय कर लिया है, तो तुम कुछ भी नहीं कर सकते हो। तुम उसे कुछ दो तो वह उसे फेंक भी सकता है। यह उसके निर्णय की बात है।
मन बहुत चालाक है।
प्रश्न में आगे पछा है 'भिखारियों का अस्तित्व ही क्यों है?'
क्योंकि मनुष्य के हृदय में प्रेम नहीं है।
लेकिन फिर मन बीच में बाधा डाल देता है 'क्या अमीरों ने गरीबों से कुछ छीना नहीं है? क्या गरीबों को वह सब वापस नहीं ले लेना चाहिए जो अमीरों ने उनसे छीन लिया है।'
अब तुम भिखारी को तो भूल रहे हो, हृदय की उस पीड़ा को तो भूल रहे हो जिसे तुमने अनुभव किया था। अब पूरी बात ही राजनीतिक और आर्थिक होने लगी। अब हृदय की बात न रही। अब वह मन की समस्या हो गयी। और अब मन ने भिखारी को निर्मित कर लिया। यह मन का ही गणित और चालाकी है जिसने भिखारी को निर्मित कर लिया। इस दुनिया में जो लोग चालाक और कुशल हैं, वे लोग ही धनी हो जाते हैं। और जो लोग निर्दोष हैं, सरल हैं, चालाक और धोखेबाज नहीं हैं, वे गरीब रह जाते हैं।
तुम समाज को बदल सकते हों-सोवियत रूस में उन्होंने ऐसा करने का प्रयास किया है। उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। अब पुराने वर्ग मिट गए हैं -जैसे गरीब और अमीर के वर्ग –लेकिन शासक और शासित, यह नए वर्ग बन गए। अब जो लोग चालाक हैं वे शासक हैं और जो लोग निर्दोष हैं वे