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विक्षेप के विषय को ही ध्यान का विषय बनाया जा सकता है। और यह विक्षेप होता है क्योंकि गहन तल पर कोई आकर्षण है, कोई समस्वरता है। इसीलिए मंत्र अशक्त, बेकार सिद्ध हुआ। मंत्र तो बस बाहर से आरोपित हुआ था। कोई कहता है कोई शब्द और तुम दोहरा देते हो उसे, लेकिन शब्द का तुम्हारे लिए कोई आकर्षण नहीं होता। पहले तुम्हारे लिए वह अस्तित्व ही न रखता था, उसकी कोई जड़ें नहीं उतरी हुई हैं तुममें। पत्नी बहुत गहरे उतरी हुई थी। प्रेम ज्यादा गहरा होता है किसी मंत्र से। मैंने कहा, 'क्यों करते हो अपना समय खराब?' वह कहने लगा, 'मैं कोशिश करूंगा। 'बस थोड़े ही दिनों बाद उसने पत्र लिखा यह कहते हुए, 'यह बड़ी आश्चर्यजनक बात है! मैं बहुत मौन और बहुत शांतिपूर्ण अनुभव करता हूं और वास्तव में मेरी पत्नी बहुत सुंदर है, यह सोचने की कोई जरूरत नहीं है कि वह मेरा ध्यान भंग कर रही है। '
इसे खयाल में रखना, क्योंकि हो सकता है तुम इसी प्रकार की बहुत बातें कर रहे होओ। जब कभी तुम्हें अनुभव हो कि कोई चीज ध्यान भंग कर रही है तो वह केवल इतना ही बताती ही है कि तुम सहज रूप से उसके प्रति आकर्षित हो और कोई बात नहीं। क्यों खड़ा करना संघर्ष? उसी दिशा में बढ़ो; उसे ही विषय बना लो ध्यान का। स्वाभाविक बने रहो, दमनात्मक मत बनो और संघर्ष मत बनाओ और तुम ध्यान प्राप्त कर लोगे।
कोई उपलब्ध नहीं होता संघर्ष द्वारा। संघर्ष निर्मित कर देगा खंडित व्यक्तित्व। स्वाभाविक आकर्षण की ओर बढ़ो; तब तुम एक होते हो, तब तुम संपूर्ण हो जाते हो। तब तुम भीतर एक जुट होते हो। तब तुम एक संपूर्ण खंड होते हो, अखंड, न कि स्वयं के विरुद्ध बंटा हुआ भवन। और जब तुम संपूर्ण खंड के रूप में बढ़ते हो तो तुम्हारे पांवों में नृत्य थिरकता है और ऐसा कुछ नहीं होता जो कि दिव्य न हो। तुम तो शायद आश्चर्य करोगे।
ऐसा हुआ कि एक महान बौद्ध भिक्षु नागार्जुन एक छोटे से गांव में ठहरे हुए थे। कोई उनके पास
आया क्योंकि वह उनके प्रति बहत आकर्षित हो गया था। उस आदमी ने कहा, 'आपके जीवन का ढंग जिस तरह से भिखारी के वेश में आप सम्राट की तरह घमते हैं, बहत गहरे रूप से आकर्षित करता है। मैं भी बनना चाहूंगा धार्मिक व्यक्ति। लेकिन एक अड़चन है। मेरे पास एक गाय है और मैं उसे बहुत ज्यादा प्यार करता हूं और वह इतनी सुंदर है कि मैं उसे नहीं छोड़ सकता। ' उसके पास तो सिर्फ एक गाय थी। उसकी कोई पत्नी न थी, बच्चे न थे, उसका विवाह ही न हुआ था, वह प्रेम करता था केवल गाय से।' जब वह यह बात कह रहा था-उसने स्वयं को थोड़ा नासमझ भी अनुभव किया। वह बोला, 'मैं जानता हूं कि आप समझेंगे इसीलिए मैं यह कह रहा हूं। बस, केवल यही है मेरी सारी अड़चन. इतनी ज्यादा अनुरक्ति है इस गाय से। मैंने ही पाला पोसा है उसे और वह इतनी ज्यादा मेरे साथ एक हो गई है और वह मुझे प्रेम करती है। तो क्या करना होगा?' नागार्जुन बोले, 'कोई जरूरत नहीं है कहीं किसी जगह जाने की। यदि कोई किसी से प्रेम करता है इतनी गहराई से तो कोई जरूरत नहीं है कहीं जाने की, 'कुछ करने की। इसी प्रेम को बना लो अपना ध्यान। गाय पर करो ध्यान। '