Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ___ अन्वय:-यथायोगं विभक्तिसमर्थाच्छूर्पाद् आ-अर्हाद् अन्यतरस्याम्
अञ्।
अर्थ:-यथायोगं विभक्तिसमर्थाच्छूर्पशब्दात् प्रातिपदिकाद् आअहीयेष्वर्थेषु विकल्पेनाऽञ् प्रत्ययो भवति। पक्षे चौत्सर्गिकष्ठञ् प्रत्ययो भवति।
उदा०-शूर्पण क्रीतम्-शौर्प घृतम् (अञ्)। शौर्पिकं घृतम् (ठञ्) ।
आर्यभाषा: अर्थ-यथायोग विभक्ति-समर्थ (शूर्पात्) शूर्प प्रातिपदिक से (आ-अत्)ि आ-अहीय अर्थों में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (अञ्) अञ् प्रत्यय होता है और विकल्प पक्ष में औत्सर्गिक ठञ् प्रत्यय होता है।
उदा०-शूर्प (दो द्रोण अन्न) से क्रीत-शौर्प घृत (अञ्)। शौर्पिक घृत (ठञ्) । सिद्धि-(१) शौर्पम् । शूर्प+टा+अञ् । शौ+अ। शौर्प+सु । शौर्पम् ।
यहां तृतीया-समर्थ, परिमाणवाची 'शूर्प' शब्द से आ-आीय क्रीत-अर्थ में इस सूत्र से 'अञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है।
(२) शौर्पिकम् । यहां परिमाणवाची 'शूर्प' शब्द से विकल्प पक्ष में यथाविहित प्राग्वतेष्ठञ् (५1१।१८) से ठञ्' प्रत्यय है। आर्हादगोपुच्छसंख्यापरिमाट्ठक्' (५।१।१९) से आ-अहीय अर्थों में परिमाणवाची प्रातिपदिक से ठञ्' प्रत्यय का प्रतिषेध-विधान से प्राग्वतेष्ठञ् (५।१।१८) से औत्सर्गिक ठञ्' प्रत्यय होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
विशेषः शूर्प चरक में दो द्रोण का शूर्प माना है, जिसे कुम्भ भी कहते थे। उनकी तालिका के अनुसार शूर्प= ४०९६ तोला १ मण ११ सेर १६ तोला (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० २४५)। अण्
(६) शतमानविंशतिकसहस्रवसनादण् ।२७। प०वि०-शतमान-विंशतिक-सहस्र-वसनात् ५ ।१ अण् १।१ ।
स०-शतमानं च विंशतिं च सहस्र च वसनं च एतेषां समाहार: शतमानविंशतिकसहस्रवसनम्, तस्मात्-शतमानविंशतिकसहस्रवसनात् (समाहारद्वन्द्वः)।
अनु०-आ-अर्हात् इत्यनुवर्तते।
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