Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 11
________________ चरित्र.. HD || तेना प्रत्युत्तरमा श्रेष्ठीए स्पष्ट रीते कडं के, हे राजन् ! मारुं समस्त वृत्तान्त सांभळी ॥ १२ ॥ श्रेष्ठी धनायनामाऽहं, श्रीवसन्तपुरे वसन् । श्रीशश्रृंजययात्रार्थ, चलितोऽत्र समागमम् ॥ १३ ॥ नाभाकं भावार्थ-९ वसंतपुर नगरमां निवास करूं छु, मारुं नाम धनाढ्य शेठ छे, अने श्रीशचुंजय तीर्थनी यात्रायें | जतां अहीं मारुं आव_ थयु छ ॥ १३ ॥ कः श्री शत्रुञ्जयस्तत्र, यात्रया किं फलं नृपे। . पृच्छतीति भाग्यलभ्याः, सभ्याः पौराणिका जगुः ॥ १४ ॥ भावार्थ-त्यारे, भाग्यथी जेमनी प्राप्ति थइ शके एवा महा धुरंधर सभामां बेठेला पौराणिक पुरुषाने राजाए । पूछयु के, ' श्री शत्रुजय तीर्थ कयुं ? तथा तेनी यात्राथी भुं फळ थाय ? । ए प्रश्ननो उत्तर पौराणिक पुरुषोए | राजाने स्पष्टतापूर्वक समजावतां कद्दु के-॥ १४ ॥ इक्ष्वाकुभूमौ भरतेऽत्र पूर्व, श्रीनाभिनामा कुलकृद् बभूव । Ramain

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