Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 55
________________ ५११ षष्टिवर्षसहस्राणि, श्रीशत्रुञ्जयपर्वते । आयुर्भुक्त्वा नागजीवो, व्यन्तरश्च्युतवानथ ॥ १३७ ॥ भावार्थ-व्यंतर देवपणे उत्पन्न कयल नागश्रेष्ठीनो जीव श्रीशQजय पर्वत उपर साठ हजार वर्ष, आयुष्य भोगवी त्यांची च्यव्यो ॥ १३७ ॥ कान्तिपुर्या रुद्रदत्त-कौटुम्बिकसुतोऽभवत् । सोमाभिधानस्तन्माता, पत्रमेंन्देहिना मृता ॥ १३८॥ . भावार्थ-श्रीशमुंजय पर्वत उपर व्यंतरपणे उत्पन्न बल नागश्रेष्ठीनो जीव साठहजार वर्षतुं आयुष्य भोगवी | व्यवीने कांतिपुरी नगरीमा रुद्रदत्त नामना कुटुंबीनो सोम नामनो दीकरो थयो. ते पुत्र ज्यारे पांच वर्षनी उम्मरमो थयो त्यारे वेनी माता सर्पदंश थवाथी मरण पामी ॥ १३८ ॥ . तत्रास्ति नास्तिकः प्राति-वेशिमको देवपूजकः।। सोमोऽपि सह तत्पुत्रै-योति देवनिकेतने ॥ १३९ ॥ भावार्थ-वे नगरीमा तेना घरनी नजीक नास्तिक नामनो देवनो पूजारी पाडोशी रहेतो हतो, ते पूजारी|| ना पुत्रो साये सोम पण देवमंदिरमा जवा लाग्यो ॥ १३९ ॥

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