Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 78
________________ भावार्थ-आ प्रमाणे श्रीयुगंधरसूरिनो उपदेश सांभळी तेज वखते नाभाकराजाए किल्लामा प्रवेश करवानो || नियम ग्रहण कर्यो, अने सर्व प्रजावर्गने बोलावी त्यांज नगर वसाव्युं ॥ २०३ स्थापयित्वा गुरूंस्तत्र, जग्राहाऽभिग्रहानिति । यावद्यानां विधायाऽत्रा-यामि तावत् क्षितौ शये ॥ २०४॥ अब्रह्म दधि-दुग्धे च, वर्जयामि क्रमादिदम् । तीर्थ ब्रह्मा-ऽपत्यहत्या-शुद्धयै भेऽभिग्रहत्रिकम् ॥ २०५ ॥ परस्त्री मांस-मद्ये च, यावज्जीवमतः परम् । त्यक्तानि नियमा एते, स्त्री गोहत्याविमुक्तये ॥ २०६॥ त्रिभिर्विशेषकम् । भावार्थ-गुरुमहाराजने पण त्यांज राखी तेश्रोधी पासे नामाकराजाए आ प्रमाणे अभिग्रहो ग्रहण कर्याज्यां सुधीमां हुं श्रीशत्रुजय तीर्थनी यात्रा करी पाछो अहीं आq त्यां सुधी पृथ्वी पर शयन करीश, तीर्थहत्यानी शुद्धि माटे यात्रा करीने पाछो आq त्यां सुधीमां मैथुननो त्याग करूं छु, ब्राह्मण हत्यानी शुद्धि माटे दहींनो त्याग करुं छु, अने बालहत्यानी शुद्धि माटे दृधनो त्याग करूं छु, स्त्रीहत्या अने गौहत्यानी शुद्धि माटे यावज्जीव परस्त्री मांस अने मद्यनो त्याग करु छै ॥ २०४-२०५-२०६॥

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