Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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|| ना.
भावार्थ-'अहो ! आ ते शुं स्वप्न छे के साचो बनाव छ ?' ए प्रमाणे आश्चर्यमां गरकाव बनेलो नृपवर || विचार करे छे तेवामां आकाशमाथी सुगंधीने लीधे खेंचाइ आवेला भमराओनी पंक्तिथी व्याप्त वनेला पुष्पोनी दृष्टि पडी ॥२५४॥
पुरः सुरः स्फुरत्कान्तिः, कश्चित् काञ्चनकुण्डलः। .. प्रादुर्भूयेत्यभाषिष्ट, कुर्वन् जयजयारवम् ॥ २५५ ॥ भावार्थ-तथा तेनी सन्मुख सुवर्णना कुंडल धारण करनार देदीप्यमान कातिवाला अने 'जय जय' शब्द || करता कोइक देवे प्रगट थइने कयु के-॥२५५ ॥ .
तव प्रशंसां सद्धर्मन् !, सौधर्मस्वामिनिर्मिताम् ।
असासहिरहं सर्व-मकार्षमिदमीदृशम् ॥ २५६ ॥ भावार्थ-" हे धार्मिक शिरोमणे ! देवलोकमां सौधर्मेन्द्रे करेली तमारी प्रशंसा सहन नहीं थवाथी तमारी ! परीक्षा माटे में आवं सर्व कार्य कर्यु छ ॥ २५६ ॥
तत् क्षमस्व महाभाग !, यदेवं क्लेशितो भवान् । तुष्टोऽस्मि तव सत्त्वेन, वरं वृणु वरं वृणु ॥ २५७ ।।

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