Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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तीर्थसेवाचिकीर्भूमा - नापृच्छयाऽथ विधिं गुरून् । धर्मध्याकलीनात्मा, त्रिकालं पूजयन् जिनम् ॥ २२२ ॥ अहोरात्रं पवित्राङ्गो, महामन्त्रमसौ स्मरन् । साधून साधर्मिकांचाsपि, प्रतिपारणकं स्वयम् ॥ २२३ ॥ सत्कारयन् यथायोग्यं, भक्तपानैर्यथोचितैः ।
मासेन दश षष्ठानि, निरम्भांसि वितेनिवन् ॥ २२४ ॥ त्रिभिर्विशेषकम् ।
भावार्थ - तीर्थसेवा करवानी इच्छा राखनार नाभाक नृपे गुरु महाराजने विधि पूछी, धर्मध्यानमां लीन आत्मावाळो थइ, त्रणे काल अरिहंत प्रभुनी पूजा करता, पवित्र अंगवाळो थइ रात्रि - दिवस परमेष्ठी महामंत्रनुं स्मरण करता, दरेक पारणाना दिवसे साधुओने अने साधर्मिक बंधुओने यथायोग्य उचित भोजन - पानथी सत्कार करता एक मासमां दस छडनी तपश्चर्या पाणी बिना करी ।। २२२-२२३-२२४ ॥
दिने त्रिंशत्तमे ब्राह्म मुहूर्ते तेन वीक्षिताः । चतस्रः पदिकामात्रा, मार्जार्यः कर्बुराः पुरा ॥ २२५ ॥
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च.
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