Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ तासां मध्यादथोत्थाय, स्वामिनी हंसगामिनी । योजिताञ्जलिरभ्येत्य, सानुरागमदोऽवदत् ॥ २४६॥ भावार्थ-ते मनहरणी सुंदरीओमाथी तेओनी स्वामिनी एक अग्रेसर स्त्री ऊठीने इंसनी जेवी मंद मंद गति || ना. करती नाभाक राजा पासे आवी, अने बे हाथ जोडी प्रेमपूर्वक बोली के-॥ २४६ ॥ अस्मदीयेन भाग्येन, समेतोऽसि गुणोदधे ।। स्त्रीणां राज्यमिदं विद्धि, योऽति पतिरेव नः ॥२४७॥ __ भावार्थ-" हे गुणसमुद्र ! तमे अमारा भाग्यथीज अहीं पधार्या छो, आ स्त्रीओ राज्य छे, अने जे अहीं आवे छे तेने अमे पति तरीकेज मानीए छीए" ॥ २४७ ॥ श्रुत्वेति नृपतिर्दध्यौ, सङ्कटान्तरमागतम् । मौनमेवाऽत्र मे श्रेयो, मौनं सर्वार्थसाधनम् ॥ २४८ ॥ भावार्थ-आ प्रमाणे स्नेह सहित प्रेमाळ वचनविलास सांभळी राजा विचारवा लाग्यो के-" आ वळी | मारे माथे बीजुं संकट आवी पडयुं !. 'इतो व्याघ्र इतस्तटी' ए न्याय प्रमाणे हुं पण अहीं सपडायो छु. हवे ||

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108