Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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भावार्थ-तीर्थकर श्रीआंदीश्वर प्रभुना वारामा मूळ बार मासी तप हतो, अत्यारे आठ मासी तप छे, अने | भाविकाळमा छ मासी तप थशे ॥ २०॥
सर्वोत्कृष्टं तपः प्राय-श्चित्तमेतदुदीरितम् ।
विशेषस्तु तीर्थहत्या-कृतां तीर्थविधापनम् ॥ २०१॥ भावार्थ-सर्वथी उत्कृष्ट प्रायश्चित्त उपर जणावेल तप कह्यो छे, विशेष एटलो के-तीर्थहत्या करनाराओए तीर्थनी स्थापना करवी जोइए ॥ २०१॥
विशिष्टाभिग्रहाः प्रोक्तं, प्रायश्चित्तं चरन्ति ये।
शत्रुज्जयादितीर्थेषु, ते मुच्यन्तेऽखिलैनसा ॥ २०२॥ भावार्थ-जेओ उपर कहेलं प्रायश्चित्त विशिष्ट प्रकारना अभिग्रहो लइ शत्रुजयादि तीर्थोमा जइ आचरे छे, तेओ समग्र पापथी मुक्त थाय छे ॥ २०२ ।।
इति श्रुत्वा नृपो दुर्ग-प्रवेशनियम ललौ। आकार्य सर्वलोकं च, तत्रैवाऽतिष्ठिपत् पुरम् ॥ २०३ ॥

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