Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 54
________________ 1५०1 सप्तमेऽस्मिन् भवे राजन् !, जाता जातिस्मृतिर्मम । अधुना तत्प्रभावेणो-त्पन्ना वाग् मानुषी पुनः ॥ १३४ ॥ भावार्थ-हे राजन् ! आ सातमा भवयां मने जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न ययुं छे, अने हमणां तेना प्रभावथी || मने मानुषी याचा उत्पन्न थवाथी आ बीना तमारी समक्ष यथार्थ निवेदन करी छे ॥ १३४ ॥ अत्रान्तरे गुरुं नत्वा, जगौ नाभाकभूपतिः।। . श्रुत्वैतिहमदो बाई, कम्पते हृदयं मम ॥ १३५ ॥ भावार्थ-आ प्रमाणे गुरुमहाराजना मुखथी पूर्वोक्त दृष्टान्त सांभळी नाभाकराजाए गुरुमहाराजने नमस्कार करी कर्वा के-'प्रभो! आ कथानक सांभळी म्हारं हृदय घणुंन कंपायमान थाय छे' ॥ १३५ ॥ . गुरुरूचेऽथ यद्येवं, तत्कथामग्रतः शृणु। यथा सम्यक् फलं वेत्सि, देवद्रव्यविनाशिनाम् ॥ १३६ ॥ भावार्थ-त्यारे गुरु हाराजे क ह्यु के-'जो एम छे तो हवे आगळ नागगोष्ठीनी कथा सांभळ, के जेथी देवद्रव्य विनाश करनारने के, फळ प्राप्त थाय छे तेनुं तने सम्यक् प्रकारे जाणपणुं थाय, अने तेथी तुं सदाने माटे अलग रहे' ॥ १३६ ॥

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