Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ भावार्थ-ते कंवली भगवानने वंदन करी राजाए गघेडा स्वरूप पूछयु, त्यारे केवली भगवाने समुद्रपाल, | अने सिंहनुं समस्त वृत्तान्त आदिवी अंत मुधी कहूं, अने जेणान्यु के-॥ १७४ ॥ सिंहजीवः सको भुक्त्वा, संसारे घोरवेदनाः। पुरेऽवाल्पकर्मत्वात्, षद्कृत्वोऽथ खरोऽजनि ॥ १७५ ।। भावार्थ-ते सिंहनो जीव संसारमा तीव्र वेदनाओ भोगवी, आज नगरमा अलसकर्मपणाथी छ वार गधेडो || थयो । १७५ ॥ भवे सप्तमके भूत्वा, श्रीन्द्रियोऽसौ ततः पुनः । खरोऽवशिष्टकर्मत्वात्, षद्कृत्वोऽत्र पुरेऽभवत् ॥ १७६ ॥ भावार्थ-त्यार बाद सातमा भवमा तेइंद्रियः थई, अवशेष रहेला कर्मथी पाछो छ वार आज नगरमा गधेडो थयो ॥ १७६ ॥ - सहस्रा बादशाऽनेन, देवद्रव्यं विनाशितम् । तत्कर्मशेषतस्तावत् , कृत्वाऽसावीदृशोऽजनि ॥ १७७ ॥ - - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108