Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 66
________________ || ना. - भावार्थ-त्यार बाद राजाए मुनिराजने अत्यंत आग्रह करी पोताना नगरमा राख्या, अने तेओश्रीए जेवी || | विधिए उपदेश आप्यो ते प्रमाणे पंचपरमेष्ठी महामंत्रनुं निरंतर ध्यान करवानो आरंभ कर्यो ॥ १६८ ॥ षड्डिासैर्नृपस्याऽभूत्, कायः काञ्चनकान्तरुक् । राज्यं गजाश्वकोशादि-वृद्धया भेजे विशालताम् ॥ १६९ ॥ भावार्थ-पंचपरमेष्ठीनुं ध्यान करतां छ मासमा चन्द्रादित्यनुं शरीर सुवर्ण सदृश मनोहर कांतिवाडं थइ गडे, अने हाथी घोड़ा तथा भंडार विगेरेनी वृद्धि यवायी राज्य पण विशाळ यइ गयुं ॥ १६९ ॥ शीर्षेऽथ चित्रकूटस्य, प्रासादं परमेशितुः। सुपर्वपर्वतोत्तुङ्ग-शृङ्ग प्रारभयन्नृपः ॥ १७० ॥ . भावार्थ-त्यार बाद चन्द्रादित्य राजाए चित्रकूट पर्वतना शिखर उपर परमात्मा जिनेन्द्र प्रभुनु मेरु पर्वत समान उंचा शिखरवाळं देरासर बंधाचवानी शरुआत करी ॥१७॥ मुनिपार्श्वे निविष्टस्य, क्षमापतेः पुरतोऽन्यदा । प्रदर्शयन् खरं कश्चित् , कुम्भकारो जगाविति ॥ १७१ ॥

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