Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 72
________________ भावार्थ- प्रातः समये सुनिए कावसम्म पार्यो, त्यारे भानुएं नमस्कार करीने पूछयूँ के - 'महाराज ! शुं तमारे कोइ मोटुं राज्य मेळ छे के जेंवी आदी घोर अने असा तपश्चर्या करो छ ? ' ॥ ९८६ ॥ मुनिः प्रोचे न राज्येन, कार्य नरकहेतुना । किन्तु मोक्षकृते सर्व-साधुभिस्तप्यते तपः ॥ १८७ ॥ भावार्थ - मुनिए जवाब आप्यो के ' नरकगति प्राप्त यवांना कारणभूत राज्यनुं सारे कांई पण काम नथी, परंतु सर्वे साधुओ मोक्ष मेळववा माटे तपश्चर्या करे छे ।। १८७ ।। को मोक्ष इति तेनापि, पृष्टः साधुरभाषत । संसार - मोक्षयोक्तं स्वरूपं बहुयुक्तिभिः ॥ १८८ ॥ भावार्थ- मानुए पूछ के - 'मोक्ष एटले शुं ?" त्यारे मुनिराजे तेने संसार अने मोक्षनुं स्पष्ट स्वरूप पगीज युक्तिपूर्वक समजान् ॥ १८८ ॥ असौ जन्मजरामृत्यु- मुख्यक्लेश सहस्रभूः । चतुर्गतिक संसारः, कस्य स्यान्न विरक्तये ? ॥ १८९ ॥ ना. च. १६८

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