Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
View full book text
________________
भावार्थ-वळी जणायु के-जन्म, जरा अने मृत्यु विगेरे हजारो दुःखथी गहन बनेका चार गतिरूप आ || संसारथी कोने वैराग्य न थाय? ॥ १८९ ।।
___ शाश्वताऽनन्तसौल्यश्री-निवासं वासवा अपि।
. स्वर्गसौल्यमनाहत्य, याचन्ते मोक्षमुत्तमम् ॥ १९॥ भावार्ष-शाश्वता अने अनंता मुखरूप लक्ष्मी निवास स्थान मोक्ष के, मा मोजमुख पासे स्वर्गसुख पण | च. तुच्छ छ, भने तेथीज इन्द्रो पण स्वर्गमुखनो अनादर करी आका अनुपम मोलने माटे याचना करी रह्या छे ॥१९॥
परं स प्राप्यते प्रायः, कृतैः सुकृतकर्मभिः
मुख्यं तेष्वपि सर्वज्ञः, सर्वसत्त्वकृपोच्यते ॥ १९॥ भावार्थ-इंद्रो पण जेनी पासे पोतानु स्वर्गमुख तुच्छ समर्जी जेने माटे तळसी रमा छे एचो उत्तमोत्तम मोक्ष प्रायः सुकृत कर्पो वहे जीवो मान करे छे. ते मुकृतकोमा. पण सर्व भीको उपर करुणाभाव राखवो ए मुख्य मुकृतकर्म सर्वशोए. कडुं छे ॥ १९११
कृपाधिकारे जीवानां, हिंसा हिंसाफलं तथा। उपादिष्टं यथा भानु-श्चकम्पे निजफापकैः ।। १९२ ॥

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108