Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ ||६० को मे प्रारभवसम्बन्ध, इति पृष्टे नूपेण सः। प्राचीकथन्मुनि ग-गोष्ठिकाख्यानमादितः ॥ १६३ ॥ भावार्थ-नृपतिए पूज्यु के-'स्वामिन् ! मारा पूर्वभवनो शो वृत्तान्त छे ते कृपा करी जणाबो.' त्यारे शांत ना. मुद्राधारी तेज परोपकारमांज निरंतर परायण मुनिराजे नागगोष्ठिकना भवथी आरंभी अंत मुधी सर्व वृत्तान्त जणाव्यो ॥ १६३ ।। प्राज्यं राज्यं शुद्धदानाद्, दद्यातो रूपमुत्तमम् । दुष्टं कुष्ठं अवहेहे-ऽभवद्देवविलेपनात् ॥ १६४ ॥ भावार्थ-परोपकार रसिक ते मुनिराजे विशेषमा जणाव्यु के-"तें पूर्व खेडुतना भवमा मुनिने शुद्ध दानथी प्रतिलाभ्या हता, तेना प्रभावी आ भवमां तने श्रेष्ठ राज्य प्राप्त थयु छ, अने दयागुणथी उत्तप रूप मळ्यु छे. पण पूर्वे तुं कांतिपुरी नगरीपां रुद्रदत्तनो सोम नामनो- पुत्र थयो हतो, ते भक्मां ते. देवद्रव्यरूप चंदननुं शरीरे विलेपन कर्यु हवं, तेथी आ भवमां तारा शरीरे दुष्ट कोढ रोग थयो छे" ॥ १६४ ॥ श्रुत्वेति भूपतिर्भातः, प्रणिपत्य यतेः पदो। . बभाषेऽस्मान्महापापाद्, मुने! मोचय मोचय ॥ १६५ ॥ -

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108