Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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भावार्थ
- एक दिवस मुनिराज पासे राजा बेठो हतो, तेत्रायां तेनी आगळ एक गंधेडाने बतावता कोइ कुंभारे आवीने कांके ॥ १७१ ॥
राजन्नित्यं वहन् वारि, स्वयं शैले चटत्यसौ ।
को हेतुरिति भूपोऽपि श्रुत्वा पप्रच्छ तं मुनिम् ॥ १७२ ॥
'भावार्थ- हे राजन् ! आ गधेदो हमेशां पाणीने वहन करती आ पर्वत उपर पोतानी मेळे चढ़े छे तेनुं शृं कारण हशे ?. राजा पण या वृत्तान्त सांभळी आश्चर्यचकित यह मुनिराजने पूछयुं ।। १७२ ।। -स एव केवली तावत्, तत्रागाद् मुनि- भूपती ।
तेन कुम्भकुता युक्तौ, नन्तुं तमथ जग्मतुः ॥ १७३ ॥
भावार्थ- ते दरम्यान तेज केवळी भगवान् के जेपणे अयोध्या नगरीमा पर्षदाम को चंद्रादित्यना पूर्वभवनो वृत्तान्त निजे सांभळ्यो हतो, तेओ चित्रपुरी नगरीमां पधार्या. केवली भगवाननुं आगमन सांभळी राजा अने मुनिराज ते कुंभार सहित केवली भगवानने वंदन करवा माटे गया ॥ १७३ ॥
खरस्वरूपं भूपेन, पृष्टः केवल्यथाऽखिलम् । समुद्रसिंह वृतान्त-मुक्त्वा मूलात् पुनर्जगौ ॥ १७४ ॥
ना.
च.
| ६३।

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