Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
View full book text
________________
सागराणि त्रयस्त्रिंश-सत्र भुक्त्वा महाव्यथाः।
उधृतो घोरसंसारं, भ्रमित्वा हालिकोऽभवत् ॥ १४६ ॥ भावार्थ-हवे ते सोम सातमी नारकीमा तेत्रीच सागरोपम सुधी महाव्यथाओ भोगवी, त्यांची नीकळी | ना. दुःखमय संसारमा भटकी भटकी खेडुत थयो ॥१४६ ॥
कौशिकाल्योऽम्बरग्रामे, ग्रामेशस्य गृहे च सः। कर्माणि कुर्वन् सर्वेषां, हालिकानां कृतेऽन्यदा ॥ १४७ ॥ आदाय भक्तं प्राचालीद्, मार्गे मासोपवासिनम् ।
वीक्ष्य सन्मुखमायान्तं, मुनि भक्त्या न्यमन्त्रयत् ॥ १४८ ॥ युग्मम् ।। भावार्थ-खेडुतना भवमां जन्म लीधेल सोमनुं नाम कौशिक हतुं. ते कौशिक अंबर नामना गाममा ते गामना स्वामीने घेर काम करतो, अने पोतानो निर्वाह चलावतो. एक दिवसे कौशिक सर्व खेडुतोने माटे भात
लइ. खेतर जवाने नीकळ्यो. रस्तामा मास उपवासवाला एक मुनिराजने सामा आवता जोइ अत्यंत भक्तिपूर्वक || पोतानी पासे रहेल भात वहोराववा विनति करी ॥ १४७-१४८ ॥

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108