Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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देवद्रव्यमयैः पूजा-ऽवशिष्टैश्चन्दनैर्वपुः ।।
विलिप्याकण्ठमाच्छाद्य, वाससा पर्यटत्यसौ ॥ १४० ।। भावार्थ--पूजा करतां बाकी रहेल देवद्रव्य रूप चंदनथी पोताना आखा, शरीरे विलेपन करी, कोइना || ना, देखावमां न आवे माटे गळा मुधी वस्त्र ढांकीने सोम हमेशां पूजारीना छोकराओ साये रझळवा लाग्यो ॥ १७॥ ||
वयःस्थः सोऽन्यदा देव-कोषं हत्वा पलायितः । स्तेना मुषित्वा तं पार-सीकदेशे विचिक्रियुः ॥ १४१॥
|॥५२॥ भावार्थ-हवे ज्यारे सोम योग्य उम्मरनो थयो त्यारे एक दिवस ते शिवना मंदिस्माथी देवनो भंडार चोरीने नासी गयो, तेनुं चोर लोकोए हरण करी पारसीक देशमा वेच्यो ॥ १४१ ॥
तत्र वस्त्राणि रज्यन्ते, तस्य रक्तैस्ततोऽसकौ । पलाय्याऽम्भोधिमुत्तीर्य, ब्रजन्नध्वनि कुत्रचित् ॥ १४२ ॥ ग्रामप्रवेशेऽभ्यायान्तं. मुनि मासोपवासिनम् । निहत्य यष्ट्या त्रीन वारान् , पापः पृथ्व्यामपातयत् ॥ १४३॥ युग्मम् ।।

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