Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
View full book text
________________
भावार्थ - तेनुं नाम चन्द्रादित्य राखवामां आन्युं हतुं चन्द्रादित्यनुं हृदयं शुद्धदया अने पुण्यना संस्कार. वाळं हतुं, शरीरे निरोगी हतो, तेनुं शारीरिक सौंदर्य अने लावण्य एम्लुं बधुं सुशोभित हतुं के जाणे रूपमा कामदेव पण तेनाथी पराभव पामे ॥ १५४ ॥
तस्याss कण्ठवपुर्दुष्ट - कुष्ठेनाश्लिष्टमन्यदा । तेनाssकण्ठपटीच्छन्न- देह एव स तिष्ठति ॥ १५५ ॥
कदाचित् प्रौढपापर्द्धि-रपि पापर्द्धि हेतवे ।
तत्सामग्रीयुतः प्राप, श्वापदानां पदं वनम् ॥ १५६ ॥
मा.
'भावार्थ- पूर्व भवमां करेला कर्मना उदयथी कोइ दिवस तेने पगथी मांडीने गळा सुधी शरीरे दुष्ट कोट १५७ रोग उदूभव पाम्यो, तेथी ते सदैव गळा सुधी वस्त्रधी आच्छादित थइनेज रहे छे ।। १५५ ।।
भावार्थ - चन्द्रादित्य कर्मना उदययी पूर्वे करेला अतिशय पापनुं फळ भोगवी रह्यो हतो, छतां हजु सुघी तेनी बुद्धि ठेकाणे न आवी, अने दुष्ट मतिथी विवेकहीन बनेलो ते राजा शिकार करवा मांटे शिकारी पशुओथी व्याप्त बनेका वनमां शिकारनी सामग्रीयुक्त थइने गयो ॥ १५६ ॥
च.

Page Navigation
1 ... 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108