Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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ना.
च.
१२८|
वामां भोजन करे छे तेवामां, ते नगरपां पुत्र रहित राजा मरण पामवाथी मंत्र बढे अधिवासित थयेला पांच दिव्योप त्यां आषी तेने हर्षसहित राज्य अर्पण कर्ये ।। ६७-६८ ॥
गजारूढः सितच्छत्र-शाली चामरवीजितः । अन्वीयमानः पूर्लोकैः स्तूयमानः कवीश्वरैः ॥ ६९ ॥ चतुरङ्गचमूचार-विचित्राऽखिल सत्पथः । राज्यसूर्यध्वानपूर्य - माणब्रह्माण्डमण्डपः ॥ ७० ॥ विलसतोरणं प्रोच्चपताकं प्रेक्ष्यनाटकम् | वर्णाम्भः सिक्तभूपठि -- व्यक्तस्वस्तिकसङ्कुलम् ॥ ७१ ॥ विचित्रोल्लोचसम्पूर्णा --ऽऽपण श्रेणिविराजितम् ।
समुद्रप्रालभूपालः, सोत्सवं प्राविशत् पुरम् ॥ ७२ ॥ चतुर्भिः कलापकम् ।
भावार्थ - तदनंतर श्रेष्ठ हस्तीवर आरुढ थयेल, श्वेत छत्रे करीने शोभायमान, चामरो बढे वींजाता, जेनी पाछळ नगरना प्रतिष्ठित लोको चाली रहेला छे. कवीश्वरो वडे स्तुति कराता, ॥ ६९ ॥ चतुरंगी सेनानी मंद मंद मनोहर गतिथी विचित्र करेलो के समग्र सुंदर मार्ग जेणे, अने राज्यना बाजींजोना मधुरा निर्घोषथी पूरी दीघो छे ब्रह्मांड
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