Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 30
________________ ॥२६॥ || छे' एम विचार करी समुद्र तीर्थयात्रा करवा माटे चालवानी तैयारी करतो हतो; तेवापां सिंहे ते नगरना राजानी || आगळ जइने निवेदन कर्यु के-'मारा मोटा भाइ समुद्रे दाटेलं निधान मेळव्युं छे, ते निधानने लइने तीर्थयात्रार्नु वहानुं करी अहींथी हमणांज जाय छे में मारी फरज समजी आपने जाहेर कर्यु छे, हवे कदाच निधान लइने चाल्यो जाय दो तेमांमारो दोष नथी।। ६१-६२॥ मुहूर्तक्षण एवाऽथ, राज्ञाऽऽहूय नियन्त्रितः। समुद्रः कारणं ज्ञात्वा, निधानाधं पुरोऽमुचत् ॥ ६३ ॥ भावार्थ-सिंहना भंभेरवार्थी कुपितं ययेला राजाए समुद्रने मुहूर्त क्षणमांज बोलावी नियंत्रित कर्यो। पोताने अकस्मात् नियंत्रित करवानुं कारण जाणीने समुद्रे अर्धनिधान राजानी आगळ मूक्युः ॥ ६३ ।। सर्व स्वरूपं चावेद्य, निधिपत्रमदर्शयत् । यथावस्थितवक्तेति, समुद्रं मुमुचे नृपः ॥ ६४ ।। . भावार्थ-तेमज निधान नीकळवा बाबतनी सर्व वात राजाने कहीने भूमिमाथी नीकळेल निधिपत्र बताव्यो। सत्यवादी समुद्रना वचन उपर राजाने संपूर्ण विश्वास बेठो, अने आ सत्य बोलनार के एम धारीने छोडी || मूक्यो ।। ६४ ॥

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