Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 47
________________ भावार्थ-हवे ते तिहे त्यां हाथीदांत खरीद करी चार वहाण भर्या, अने पोताना कुटुंबने तजि मूकी समु-|| द्रमार्गे सोरठ देश तरफ़ ते चाल्यो ॥ ११३ ॥ . तीवा समुद्र क्षेमेण, सुराष्ट्रातटसंकटे । ना. भग्नानि तानि यानानि, न हि श्रेयोऽतिपिनाम् ॥ १.१४ ।। भावार्थ-समुद्रमार्गे जता जतां ठेठ मुधी जलमार्ग कुशलता पूर्वक ओळग्यो, पण सोरठ देशना किनारा । नजीक आवतां अकस्मात् कोइ खराबा साये अथडावाथी चारे वहाण भांगी गया; खरेखर पापकर्मथी आजीविका ||४२५ चलावनार अति पापी पुरुषोनु कदापि कल्याण थातुं नथी ।। ११४ ॥ ततः सिंहो विपद्याऽऽद्य-नरकं तत्र वेदनाः। विषयोध्धृत्य संजातः, सिंहो हिंसापरायणः ॥ ११५ ॥ भावार्थ-चारे वहाण भांगी जवाथी सिंह समुद्रमा दूवी मरणने शरण थयो, अने पहेली नारकीमा उत्पन थयो. त्या अत्यंत तीव्र वेदनाओ सहन करी, आयुष्य पूर्ण यतां त्यांथी नीकळी तिर्यंचना भवमां हिंसाने विषे तत्पर एवो सिंह थयो ॥११५ ॥ यह

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