Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ भावार्थ - भरत क्षेत्र अने ऐरवतक्षेत्रमा उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी काळमां त्रेसठ त्रेसठ शलाकापुरुषो थाय छे, अने ते आप्रमाणे चोवीस तीर्थकर, बार चक्रवर्ती, नव वासुदेव, नव प्रतिवासुदेव अने नव राम (बलदेव) ।। १२४-१२५ ।। एतेषु पूर्व श्रीरामो, राज्यं न्यायेन पालयन् । कृपया निःस्वलोकानां, न्यायघण्टा मवीवदत् ॥ १२६ ॥ भावार्थ - ए प्रेसठ पुरुषोमां पड़ेलां श्रीराम नीतिपूर्वक राज्यनुं पालन करतो हतो, अने गरीब मजा उपर दयादृष्टि राखी न्यायनो ढंको वज़डाव्यो हतो ॥ १२६ ॥ एकदा कुर्कुरः कश्चिन्निविष्टो राजवर्त्मनि । केनचिद् विप्रपुत्रेण, कर्करेणाहतः श्रुतौ ॥ १२७ ॥ भावार्थ - तेना राज्यमां एक दिवस जाहेर रस्ता उपर एक कूतरो बेठो हतो, ते कूतराने कान उपर कोई ब्राह्मणना छोकराए कांकरो फेंकी घायल कर्यो ॥ १२७ ॥ श्वा निर्यद्रुधिरो न्याय - स्थानं गत्वा निविष्टवान् । नाय पृष्टोऽव, निरागाः किमहं हतः ॥ १२८॥ ना. च. ॥४७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108