Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 50
________________ अन्यायात् स्वल्पदेवस्व-भक्षणादपि यद्यभूत्। शैवः श्रेष्ठी सप्तकृत्वः, श्वाऽतो वै त्याज्यमेव तत् ॥१२२॥ भावार्थ- अन्यायथी जरा मात्र पण देवव्यनुं भक्षण करवाथी शैव शेठ सातवार कूतराना भवमां | ना. उत्पन्न थयो, माटे खरेखर ते तजवा योग्य छे ॥ १२२ ॥ अत्रान्तरे विभो! कोऽसौ, श्रेष्ठी जातश्च श्वा कथम् । इति नामाकभूपेन, पृष्टे गुरुरभाषत ॥ १२३ ॥ भावार्ष-आ वखते नाभाक' राजाए महात्मा युगंधराचार्यनें पूछयुं के–'प्रभो! आ शैव शेठ कोण? अने | तेने सात वखत कूतरानो अवतार केम ग्रहण करवो पड्यो ?' आ प्रमाणे नाभाक राजाए पूछवाथी सद्गुरु महाराजे पण ते चरित्रनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे कहेवानो आरंभ कर्यो ॥ १२३ ॥ उत्सर्पिण्यवसर्पिण्यो-भरतैरवतक्षितौ । प्रत्येक किल जायन्ते, शलाकाः पुरुषा अमी ॥१२४॥ चतुर्विंशतिरहन्त-स्तथा द्वादश चक्रिणः। विष्णुप्रतिविष्णुरामाः, प्रत्येकं नवसङ्ख्यया ॥१२॥

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