Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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सप्तमं नरकं गत्वा, मत्स्योऽजायत तन्दुलः ।।
पुनः सप्तममेवाऽगा-नरकं दुःखसागरम् ॥ ११९ ॥ भावार्थ-मत्स्यनुं आयुष्य पूर्ण करी सातमी नारकीयां गयो. त्यांची नीकली तंदुलीयो मत्स्य थयो. ना. त्यांयी वळी पाछो दुःखना सागर समान सातमीज नारकीमा गयो. ॥ ११९ ॥
विपर्यासेन चण्डाल-स्त्र्यादियोनिषु पूर्ववत् ।। क्रमेण सेहे कष्टानि, षष्ठादिनरकेषु च ॥ १२० ॥
॥४५॥ भावार्थ-वळी पाछो विपर्यास वडे [उलटी रीते] चंडालस्त्री विगेरे योनिमां तथा क्रपसर छट्ठी विगेरे नारकीमा पूर्वनी जेम उत्पन्न थइ असा कष्टो सहन कर्या ॥ १२०॥ .....
ततो निपतितो घोरे, संसारे दुःखसागरे ।
देवद्रव्यविनाशस्य, ज्ञेयं सर्वमिदं फलम् ॥ १२१ ॥ भावार्थ-त्यार पछी दुःखसागर घोरसंसारमा भिन्न भिन्न स्थळे उत्पन थइ अपार कष्टो सहन करतो || छतो रझळ्यो. आ सर्व देवद्रव्य विनाशचं ज फळ जाणतुं ॥ १२१॥

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